रूठ जाने के तरीके और भी थे 
मगर आँखों में समंदर ही क्यों लाना था तुम्हे 
दूर चले जाने के रस्ते और भी थे,
मगर राहे-ए-नफरत से ही क्यों जाना था तुम्हे|